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Brinjal Farming

बैंगन की खेती की संपूर्ण जानकारी

बैंगन की खेती की संपूर्ण जानकारी

दोस्तों आज हम बात करेंगे बैगन या बैंगन की खेती की, किसानों के लिए बैगन की खेती (Baigan ki kheti - Brinjal farming information in hindi) करना बहुत मुनाफा पहुंचाता है। 

बैगन की खेती से किसानों को बहुत तरह के लाभ पहुंचते हैं। क्योंकि बैगन की खेती करने से किसानों को करीब प्रति हेक्टर के हिसाब से 120 क्विंटल की पैदावार की प्राप्ति होती है। 

इन आंकड़ों के मुताबिक आप किसानों की कमाई का अनुमान लगा सकते हैं। बरसात के सीजन में बैगन की खेती में बहुत ज्यादा उत्पादकता होती है। बैगन की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक  बातों को जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बनें रहे।

बैगन की खेती करने का मौसम :

बैगन की बुवाई खरीफ के मौसम में की जाती है। वैसे तो किसान खरीफ के सीजन में विभिन्न प्रकार की फसलों की बुवाई करते हैं। जैसे:  ज्‍वार, मक्का, सोयाबीन इत्यादि। 

परंतु बैगन की खेती करने से बेहद ही मुनाफा पहुंचता है। बैगन की फसल की बुवाई किसान वर्षा कालीन के आरंभ में ही कर देते हैं। क्‍यांरियां थोड़ी थोड़ी दूर पर तैयार की जाती है। 

किसान 1 हेक्टेयर भूमि पर 20 से 25 क्‍यारियां लगाते हैं। भूमि में क्यारियों को लगाने से पहले उच्च प्रकार से खाद का चयन कर लेना फायदेमंद होता है।

बैगन की फसल की रोपाई का सही समय :

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार बैंगन के पौधे तैयार होने में लगभग 30 से 40 दिन का समय लेते हैं। पौधों में बैगन की पत्तियां नजर आने तथा पौधों की लंबाई लगभग 14 से 15 सेंटीमीटर हो जाने पर रोपाई का कार्य शुरू कर देना चाहिए। 

किसान बैगन की फसल की रोपाई का सही समय जुलाई का निश्चित करते हैं। ध्यान रखने योग्य बात : बैगन की फसल रोपाई के दौरान आपस में पौधों की दूरी लगभग 1 सेंटीमीटर से 2 सेंटीमीटर रखना उचित होता है। 

किसानों के अनुसार हर एकड़ पर लगभग 7000 से लेकर 8000 पौधों की रोपाई की जा सकती है। किसान बैगन की फसल की उत्पादकता 120 क्विंटल तक प्राप्त करते हैं। 

बैगन की कुछ बहुत ही उपयोगी प्रजातियां हैं, जो इस प्रकार है : पूसा पर्पल, ग्रांउड पूसा, अनमोल आदि प्रजातियां की बुवाई किसान करते हैं।

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बैगन की फसल के लिए उपयुक्त मिट्टी का चयन:

बैगन की फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए किसान हमेशा दोमट मिट्टी का ही चयन करते हैं। बलुई और दोमट दोनों प्रकार की मिट्टियां बैगन की फसल के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं। 

बैगन की फसल की पैदावार को बढ़ाने के लिए  कार्बनिक पदार्थ से निर्मित मिट्टी का भी चयन किया जाता है। खेत रोपण करते वक्त इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि खेतों में जल निकास की व्यवस्था को सही ढंग से बनाए रखना चाहिए। 

क्योंकि बैगन की फसल बरसात के मौसम में लगाई जाती है, ऐसे में जल एकत्रित हो जाने से फसल खराब होने का भय होता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार बैगन की फसल के लिए सबसे अच्छा मिट्टी का पीएच करीब 5 से 6 अच्छा होता है।

बैंगन की फसल के लिए खाद और उर्वरक की उपयोगिता:

बैगन की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए कुछ चीजों को ध्यान में रखना बहुत ही ज्यादा उपयोगी है। जिससे आप बैंगन की फसल की ज्यादा से ज्यादा उत्पादकता को प्राप्त कर सकेंगे। 

खेतों में आपको लगभग 1 हेक्टेयर में 130 और 150 किलोग्राम नाइट्रोजन का इस्तेमाल करना चाहिए। वहीं दूसरी ओर 65 से 75 किलोग्राम फास्फोरस का इस्तेमाल करें। 

40 से 60 किलोग्राम पोटाश खेतों में छोड़े, वहीं दूसरी ओर डेढ़ सौ से दो सौ क्विंटल गोबर की खाद खेतों में भली प्रकार से डालें।

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बैंगन की फसल की तुड़ाई का सही समय:

बैगन की फसल की तुड़ाई करने से पहले कुछ चीजों का खास ख्याल रखना चाहिए। सबसे पहले आपको तुड़ाई करते समय चिकनाई और उसके आकर्षण को भली प्रकार से जांच कर लेना चाहिए। 

बैगन ज्यादा पके नहीं तभी तोड़ लेनी चाहिए। इससे बैगन में ताजगी बनी रहती है और मार्केट में अच्छी कीमत पर बिकते हैं। बैगन की मांग मार्केट में बहुत ज्यादा होती है। 

बैगन के आकार को जांच परख कर ही तुड़ाई करना चाहिए। बैगन की तुड़ाई करते समय आपको इन चीजो का खास ख्याल रखना चाहिए। 

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह आर्टिकल बैगन की खेती पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में बैगन की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक और महत्वपूर्ण जानकारियां मौजूद है। 

जो आपके बहुत काम आ सकती है। हमारे इस आर्टिकल से यदि आप संतुष्ट हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया  तथा अन्य प्लेटफार्म पर शेयर करें।

जुलाई माह में बैगन की खेती करने पर किसानों को मिलेगा अच्छा मुनाफा

जुलाई माह में बैगन की खेती करने पर किसानों को मिलेगा अच्छा मुनाफा

यदि किसान चाहें, तो नर्सरी से पौधे खरीद कर अगले महीने से बैंगन की खेती शुरू कर सकते हैं। पौधे लगाने के 70 से 80 दिन बाद बैंगन की फसल तैयार हो जाएगी। बैंगन एक ऐसी फसल है, जो कि पूरे सालभर बाजार में मिलती है। कोई इसकी सब्जी का सेवन करना पसंद करता है, तो किसी को बैगन का भरता अच्छा लगता है। बैंगन में विभिन्न प्रकार के विटामिन और पोषक तत्व विघमान रहते हैं। बैंगन का सेवन करने से एनीमिया जैसे रोग से निजात मिलती है। साथ ही, इसका सेवन करने से वजन भी घट जाता है। यही कारण है, कि बैगन की बाजार में हमेशा मांग बनी रहती है। ऐसी स्थिति में अगर किसान भाई बैंगन की खेती करते हैं, तो अच्छी आमदनी कर सकते हैं।

इन राज्यों में जुलाई से दिसंबर तक बैगन की रोपाई की जाती है

बैंगन उन फसलों में से एक फसल है, जिसका उत्पादन पूरे देश में साल भर पूरे देश में किया जाता है। बतादें, कि हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की बात की जाए तो इन राज्यों में बैंगन की फसल जुलाई से लगाकर दिसंबर तक लगाई जाती हैं। इससे पूरे वर्ष भर खेत से बैंगन की पैदावार होती है। आप एक एकड़ भूमि में 3500 बैंगन के पौधे लगा सकते हैं। विशेष बात यह है, कि बैंगन के पौधों की रोपाई सदैव 6×3 फीट के फासले पर ही करें। इससे बैंगन के पौधों को विकास करने के लिए पर्याप्त जगह मिलती है। साथ ही, इससे इसकी कटाई भी बड़ी सुगमता से होती है। ये भी पढ़े: सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

बैगन की फसल तुड़ाई के लिए कितने दिन में तैयार हो जाती है

यदि उत्तर और मध्य भारत के किसान चाहें, तो नर्सरी से पौधे खरीद कर अगले माह से बैंगन की खेती आरंभ कर सकते हैं। पौध रोपण के 70 से 80 दिन उपरांत बैंगन की फसल तैयार हो जाएगी। मतलब कि आप बैंगन की तुड़ाई कर सकते हैं। बैंगन की विशेष बात यह है, कि यह बहुत सारे महीनों तक निरंतर उत्पादन देता है। इससे किसान के घर में सब्जी की कभी कोई कमी नहीं होती है। यदि आपने एक एकड़ जमीन में बैंगन की खेती की है, तो आपको पूरे सीजन में 40 टन तक उत्पादन मिलेगा।

बैगन की खेती करने पर कितना खर्च और कितना मुनाफा होगा

यदि आप एक हेक्टेयर भूमि में बैगन की खेती करने की योजना बना रहे हैं, तो आपको 2 लाख रुपये का खर्चा करना पड़ेंगा। साथ ही, पूरे सीजन इसकी देखभाल करने पर भी 2 लाख रुपये की लागत आ जाऐगी। मतलब कि आपको वर्षभर में बैंगन की खेती पर 4 लाख रुपये का खर्चा करना पड़ेगा। परंतु, इससे आप एक वर्ष में 100 टन तक उत्पादन अर्जित कर सकते हैं। यदि आप 10 रुपये किलो के मुताबिक भी मंडी में बैंगन बेचते हैं, तो 100 टन बैंगन का विक्रय करने पर आपको 10 लाख रुपये की आमदनी होगी। अगर 4 लाख रुपये खर्च निकाल देते हैं, तब भी आपको 6 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा प्राप्त होगा।
निरंजन सरकुंडे का महज डेढ़ बीघे में बैंगन की खेती से बदला नसीब

निरंजन सरकुंडे का महज डेढ़ बीघे में बैंगन की खेती से बदला नसीब

किसान निरंजन सरकुंडे ने बताया है, कि उनके पास 5 एकड़ खेती करने लायक भूमि है। पहले सरकुंडे अपने खेत में पारंपरिक फसलों की खेती किया करते थे। जिससे उनको उतनी आमदनी नहीं हो पाती थी। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, बिहार और हरियाणा में ही किसान केवल बागवानी की ओर रुख नहीं कर रहे। इनके साथ-साथ दूसरे राज्यों में भी किसान पारंपरिक फसलों की जगह फल और सब्जियों की खेती में अधिक रुची ले रहे हैं। मुख्य बात यह है, कि सब्जियों की खेती करने से किसानों की आय में भी काफी इजाफा होगा। इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार देखने को मिलेगा। हालांकि, पहले पारंपरिक फसलों की खेती करने पर किसानों को खर्चे की तुलना में उतना ज्यादा मुनाफा नहीं होता था। साथ ही, परिश्रम भी काफी ज्यादा करना पड़ता था। बहुत बार तो अत्यधिक बारिश अथवा सूखा पड़ने से फसल भी बर्बाद हो जाती थी। परंतु, वर्तमान में बागवानी करने से किसानों को प्रतिदिन आमदनी हो रही है। 

महाराष्ट्र के नांदेड़ निवासी किसान का चमका नसीब

वर्तमान में हम महाराष्ट्र के नांदेड़ के निवासी एक ऐसे ही किसान के संबंध में बात करेंगे, जिनकी
सब्जी की खेती से किस्मत बदल गई। इस किसान का नाम निरंजन सरकुंडे है। वह नांदेड जिला स्थित जांभाला गांव के मूल निवासी हैं। निरंजन सरकुंडे एक छोटे किसान हैं। उनके समीप काफी कम भूमि है। उन्होंने डेढ़ बीघे भूमि पर बैंगन की खेती की है। विशेष बात यह है, कि विगत तीन वर्षों से वह इस खेत में बैंगन की पैदावार कर रहे हैं, जिससे उन्हें अभी तक चार लाख रुपये की आमदनी हुई है।

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बैंगन विक्रय कर कमा चुके 3 लाख रुपये का मुनाफा

निरंजन सरकुंडे का कहना है, कि उनके समीप 5 एकड़ खेती करने लायक भूमि है। निरंजन सरकुंडे इससे पहले अपने खेत में पारंपरिक फसलों की खेती किया करते थे। परंतु, उससे उनको उतनी ज्यादा कमाई नहीं हो पाती थी। अब ऐसी स्थिति में उन्होंने सब्जी का उत्पादन करने का निर्णय लिया। उन्होंने डेढ़ बीघे भूमि में बैंगन की बिजाई कर डाली, जिससे कि उनकी अच्छी-खासी आमदनी हो रही है। वर्तमान में वह बैंगन बेचकर 3 लाख रुपये का मुनाफा कमा चुके हैं। हालांकि, वह बैंगन के साथ-साथ पांरपरिक फसलों का भी उत्पादन कर रहे हैं। 

निरंजन सरकुंडे के बैगन की बिक्री स्थानीय बाजार में ही हो जाती है

वर्तमान में निरंजन सरकुंडे पूरे गांव के लिए मिसाल बन गए हैं। वर्तमान में पड़ोसी गांव ठाकरवाड़ी के किसानों ने भी उनको देखकर सब्जी की खेती चालू कर दी है। निरंजन सरकुंडे ने बताया है, कि इस डेढ़ बीघे भूमि में बैंगन की खेती से वह तकरीबन 3 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा अर्जित कर चुके हैं। हालांकि, डेढ़ बीघे भूमि में बैंगन की खेती करने पर उनको 30 हजार रुपये का खर्चा करना पड़ता है। छोटी जोत के किसान निरंजन द्वारा पैदा किए गए बैंगन की स्थानीय बाजार में अच्छी-खासी बिक्री है। सरकुंडे ने बताया है, कि ह वह अपने खेत की सब्जियों को बाहर सप्लाई नहीं करते हैं। उनके बैगन की स्थानीय बाजार में ही काफी अच्छी बिक्री हो जाती है।

किसान निरंजन सरकुंडे ने ड्रिप सिंचाई के माध्यम से बैगन की खेती कर कमाए लाखों

किसान निरंजन सरकुंडे ने ड्रिप सिंचाई के माध्यम से बैगन की खेती कर कमाए लाखों

जैसा कि हम सब जानते हैं कि बैंगन एक ऐसी सब्जी है जिसकी हमेशा मांग बनी रहती है। इसका भाव सदैव 40 से 50 रुपये किलो के समीप रहता है। एक बीघे भूमि में बैंगन का उत्पादन करने पर 20 हजार रुपये के आसपास लागत आएगी। दरअसल, लोगों का मानना है कि नकदी फसलों की खेती में उतना ज्यादा मुनाफा नहीं है। विशेष रूप से हरी सब्जियों के ऊपर मौसम की मार सबसे ज्यादा पड़ती है। वह इसलिए कि हरी सब्जियां सामान्य से अधिक बारिश, गर्मी एवं ठंड सहन नहीं कर पाती हैं। इस वजह से ज्यादा लू बहने, पाला पड़ने एवं अत्यधिक बारिश होने पर बागवानी फसलों को सबसे ज्यादा क्षति पहुंचती है। हालाँकि, बेहतर योजना और आधुनिक ढ़ंग से सब्जियां उगाई जाए, तो इससे ज्यादा मुनाफा किसी दूसरी फसल की खेती के अंदर नहीं हैं। यही कारण है, कि अब महाराष्ट्र में किसान पारंपरिक फसलों के स्थान पर सब्जियों की खेती में अधिक परिश्रम कर रहे हैं।

किसान निरंजन को कितने लाख की आय अर्जित हुई है

आज हम आपको एक ऐसे किसान के विषय में जानकारी देंगे, जिन्होंने सफलता की नवीन कहानी रची है। बतादें, कि इस किसान का नाम निरंजन सरकुंडे है और यह महाराष्ट्र के नांदेड जनपद के मूल निवासी हैं। सरकुंडे हदगांव तालुका मौजूद निज गांव जांभाला में पहले पारंपरिक फसलों की खेती किया करते थे। परंतु, वर्तमान में वह बैंगन की खेती कर रहे हैं, जिससे उनको काफी अच्छी आमदनी हो रही है। मुख्य बात यह है, कि निरंजन सरकुंडे ने केवल डेढ़ बीघा भूमि में ही बैंगन लगाया है। इससे उन्हें चार लाख रुपये की आय अर्जित हुई है।

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निरंजन को देख अन्य पड़ोसी गांव के किसान भी खेती करने लगे

निरंजन का कहना है, कि उनके समीप 5 एकड़ जमीन है, जिस पर वह पूर्व में पारंपरिक फसलों की खेती किया करते थे। परंतु, इससे उनके घर का खर्चा नहीं चल रहा था। ऐसे में उन्होंने डेढ़ बीघे खेत में बैंगन की खेती चालू कर दी। इसके पश्चात उनकी तकदीर बदल गई। वह प्रतिदिन बैंगन बेचकर मोटी आमदनी करने लगे। उनको देख प्रेरित होकर उनके पड़ोसी गांव ठाकरवाड़ी के किसानों ने भी सब्जी का उत्पादन कर दिया। वर्तमान मे सभी किसान सब्जी की पैदावार कर बेहतरीन आमदनी कर रहे हैं।

निरंजन सरकुंडे ड्रिप इरिगेशन विधि से फसलों की सिंचाई करते हैं

सरकुंड के गांव में सिंचाई हेतु पानी की काफी किल्लत है। इस वजह से वह ड्रिप इरिगेशन विधि से फसलों की सिंचाई करते हैं। उन्होंने बताया है, कि रोपाई करने के दो माह के उपरांत बैंगन की पैदावार हो जाती है। वह उमरखेड़ एवं भोकर के समीपवर्ती बाजारों में बैंगन को बेचा करते हैं। इस डेढ़ बीघे भूमि में बैंगन की खेती से निरंजन सरकुंडे को तकरीबन 3 लाख रुपये का शुद्ध लाभ प्राप्त हुआ है। वहीं, डेढ़ बीघे भूमि में बैंगन की खेती करने पर 30 हजार रुपये की लागत आई थी। उनकी मानें तो फिलहाल वह धीरे- धीरे बैंगन का रकबा बढ़ाएंगे। पारंपरिक खेती की बजाए आधुनिक ढ़ंग से बागवानी फसलों का उत्पादन करना काफी फायदेमंद है।
मार्च-अप्रैल में की जाने वाली बैंगन की खेती में लगने वाले कीट व रोग और उनकी दवा

मार्च-अप्रैल में की जाने वाली बैंगन की खेती में लगने वाले कीट व रोग और उनकी दवा

मार्च माह में किसान भाई बैंगन की खेती कर अच्छा-खासा मुनाफा हांसिल कर सकते हैं। मार्च में बागवानी करने की सोच रहे किसानों के लिए बैगन की खेती एक लाभकारी विकल्प है। पौधों में विभिन्न प्रकार के कीड़ों एवं रोगों का प्रकोप रहता है।

इन कीटों से बैंगन की फसल को काफी ज्यादा हानि होती है। पौधों की सही ढ़ंग से देखभाल कर हम अपने पौधों को इनसे संरक्षित कर सकते हैं। आज हम इस लेख में आपको बताऐंगे बैगन में लगने वाले कीट एवं रोगों व उनकी रोकथाम के बारे में। 

टहनी व फल छिद्रक

किसानों के लिए बैंगन की फसल में टहनी और फल छिद्रक की समस्या काफी बड़ी चुनौती है। इस पर काबू पाने के लिए किसान रासायनिक कीटनाशकों का सहयोग लेते हैं। लेकिन, बहुत बारी कीटों को नियंत्रित करना काफी मुश्किल हो जाता है। 

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इसकी वजह यह है, कि कीट फल या टहनी के भीतर होते हैं और कीटनाशक सीधे कीट तक नहीं पहुँच पाता है। इसका अत्यधिक संक्रमण होने की स्थिति में यह बैंगन की फसल को कई बार पूर्णतय बर्बाद कर देता है। आप इसके लिए Yodha Super का उपयोग कर सकते हैं।

पत्ते खाने वाले झींगुर

पीले रंग के कीट और शिशु निरंतर बैंगन की फसल में पत्तों और पौधे के कोमल हिस्सों को खाते हैं। इन कीटों के भारी संख्या में उत्पन्न होने पर काफी गंभीर  क्षति पहुंचाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पत्ते पूरी तरह से कंकाल में बदल जाते हैं तथा केवल शिराओं का जाल ही दिखता है। आप इसके लिए Yodha Super का इस्तेमाल कर सकते है।

लीफ हापर

नवजात तथा व्यस्क दोनों ही बैंगन की फसल में पत्तों की नीचली सतह से रस चूस लेते हैं। संक्रमित पत्ता किनारों समेत ऊपर की ओर मुड जाता है, पीला पड़ जाता है और जले जैसे धब्बे दिखने लग जाते हैं। 

इससे रोग भी संचारित होते हैं, जैसे माइकोप्लास्मा रोग और मोजेक जैसे वायरस रोग इस प्रकोप के कारण फलों की स्थिति बहुत बुरी तरह से प्रभावित होती है। इसके लिए आप Sansui (Diafenthiuron 50% WP) का इस्तेमाल कर सकते हैं, जो कि अत्यंत लाभदायक है।

लीफ रोलर

केटरपिलर बैंगन की फसल में पत्तों को मोड़ देते हैं। साथ ही, उनके अंदर रहते हुए क्लोरोफिल को खाकर जीवित रहते हैं। मुड़े हुए पत्ते मुरझा कर सूख जाते हैं। इसके लिए आप Sansui (Diafenthiuron 50% WP) का उपयोग कर सकते है, जो कि काफी फायदेमंद है।

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लाल घुन मकड़ी

घुन बैंगन की फसल का कीट है, कम आपेक्षित नमी में इनकी संख्या काफी बढ़ जाती है। पत्तों के निचले हिस्सों में सफेद रेशमी जालों से ढकी इनकी कालोनियां होती हैं, जिनमें यह घुन कई चरणों में पाए जाते हैं। 

यह शिशु व व्यस्क कोशिकाओं से रस चूसते हैं, जिससे पत्तों पर सफेद धब्बे पड़ जाते हैं। इनकी चपेट में आए पत्ते बहुत ही विचित्र हो जाते हैं एवं भूरे रंग में परिवर्तित होकर झड़ जाते हैं। इसके लिए आप Sansui (Diafenthiuron 50% WP) का उपयोग कर सकते हैं, जो कि अत्यंत लाभदायक है।

सफेद कीट

सफेद खटमल नवजात तथा व्यस्क पत्तों, कोमल टहनियों और फलों से रस चूस लेते हैं। पत्तों में वायरस जैसे ही मुड़ने के विशेष लक्षण दिखते हैं। इन खटमलों द्वारा छिपाई गयी मधुरस की बूंदों पर काली मैली भारी फफूंद लग जाती है। अगर खिले हुए फूलों पर संक्रमण होता है, तो फलों के संग्रह पर भी असर पड़ता है। 

फल प्रभावित होते ही पूरी तरह से कीटों से ढक जाते हैं। इस प्रभाव की वजह से या तो फल टूट कर गिर जाता है या सूखी व मुरझाई स्थिति में टहनी से लटका रहता है। इसके लिए आप Sansui (Diafenthiuron 50% WP) का प्रयोग कर सकते हैं, जो कि काफी फायदेमंद है।

मृदा में नमी ज्यादा हो जाना

यह रोग पौधों को नर्सरी में बेहद ज्यादा क्षति पहुंचाता है। मृदा की उच्च नमी और मध्य तापमान के साथ, विशेषकर वर्षा ऋतु, इस रोग को प्रोत्साहन देती है। यह दो प्रकार से होता है, उद्भव से पहले तथा उद्भव के बाद। इसके लिए आप Ribban Plus (Captan 50% WP) का इस्तेमाल कर सकते हैं, जो कि काफी फायदेमंद है।

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फोमोप्सिस हानि का होना 

यह एक गंभीर रोग है, जो पत्तों तथा फलों को काफी प्रभावित करता है। कार्यमंदन के लक्षणों की वजह से कवक नर्सरी में ही अंकुरों को प्रभावित कर देती है। अंकुरों का संक्रमण, कार्यमंदन के लक्षणों की वजह बनता है। जब पत्ते प्रभावित होते हैं, तब छोटे गोल धब्बे पड़ जाते है, जो अनियमित काले किनारों के साथ-साथ धुमैले से भूरे रंग में परिवर्तित हो जाते हैं।

डंठल और तने पर भी घावों का विकास हो सकता है, जिसके चलते पौधे के प्रभावित हिस्सों को क्षति पहुँचती है। प्रभावित पौधों पर लक्षण पल भर में आ जाते हैं, जैसे धंसे निष्क्रिय व धुंधले चिन्ह जो कुछ समय बाद में विलय होकर गले हुए क्षेत्र बनाते हैं। कई संक्रमित फलों का गुद्दा सड़ जाता है। 

लीफ स्पॉट

बिगड़े हुए हरे रंग के घाव, कोणीय से अनियमित आकार, बाद में धूमैला-भूरा हो जाना, इस रोग के विशिष्ट चिन्ह हैं। कई संक्रमित पत्ते अपरिपक्व स्थिति में ही नीचे गिर जाते हैं। नतीजतन बैंगन की फसल में फलों की पैदावार कम हो जाती है। 

पत्तों के अल्टरनारिया धब्बे

अल्टरनारिया रोग के चलते गाढे छल्लों के साथ पत्तों पर विशेष धब्बे पड़ जाते हैं। ये धब्बे अधिकांश अनियमित होते हैं और इकठ्ठे होकर पत्ते का काफी बड़ा भाग ढक देते हैं। वहीं, गंभीर रूप से प्रभावित पत्ते नीचे गिर जाते हैं। प्रभावित फलों पर ये लक्षण बड़े गहरे छिपे धब्बों के रूप में होते हैं। संक्रमित फल पीले पड़ जाते हैं तथा पकने से पहले ही टूट के गिर जाते हैं।

फल सडन 

बैंगन की फसल में अत्यधिक नमी के चलते इस रोग का विकास होता है। पहले फल के ऊपर एक छोटा पानी से भरा जख्म एक लक्षण के तौर पर उभरता है। जो कि बाद में काफी ज्यादा बड़ा हो जाता है। 

संक्रमित फलों का छिलका भूरे रंग में परिवर्तित हो जाता है तथा सफेद रुई जैसी पैदावार का विकास हो जाता है। इसके लिए आप Ribban Plus (Captan 50% WP) का इस्तेमाल कर सकते हैं, जो कि अत्यंत फायदेमंद है।

जायद में बैंगन की इन किस्मों से मिलेगा तगड़ा मुनाफा

जायद में बैंगन की इन किस्मों से मिलेगा तगड़ा मुनाफा

रबी की फसलों की कटाई के बाद अब जायद का सीजन शुरू हो गया है। अधिकांश किसान बैंगन की खेती जायद सीजन में करते हैं। क्योंकि, यह एक ग्रीष्मकालीन नकदी फसल है। 

बैंगन की खेती मिश्रित फसल के रूप में भी की जाती है। बैंगन शुष्क और गर्म जलवायु में बेहतरीन रूप से बढ़ता है। बैंगन की खेती से मोटा मुनाफा कमा सकते हैं। 

लेकिन, इसके लिए आपको बैंगन की बेहतरीन किस्मों को जान लेना चाहिए। इसके बाद आप बैंगन की खेती (Brinjal Farming) कर काफी मोटा मुनाफा कमा सकते हैं। 

बैंगन की उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं

बैंगन की उन्नत किस्में जैसे कि- पूसा क्लस्टर, पूसा क्रांति, पंजाब जामुनी गोला, नरेंद्र बागन-1, आजाद क्रांति, पंत ऋतुराज, पंत सम्राट, टी-3, पूसा हाइब्रिड-5, पूसा हाइब्रिड-9, विजय हाइब्रिड, पूसा पर्पिल लौंग आदि प्रमुख हैं।

बैंगन की खेती कब और कैसे की जाती है

ग्रीष्मकालीन बैंगन की खेती करने के लिए सबसे पहले बेहतर जल निकास वाली बलुई दोमट मृदा उपयुक्त है। मिट्टी का पी.एच मान 6 से 7 के बीच सही रहता है। 

किसान भाई ग्रीष्मकालीन बैंगन के लिए नर्सरी में बीज की बुवाई करें। ग्रीष्मकालीन बैंगन में खाद और उर्वरक की मात्रा प्रजाति, स्थानीय वातारण और मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करती है।

बेहतरीन फसल के लिए 15-20 टन सड़ी गोबर की खाद खेत को तैयार करते समय और पोषक तत्वों के तोर पर रोपाई से पूर्व 60 किग्रा फॉस्फोरस, 60 किग्रा पोटाश और 150 किग्रा नाइट्रोजन की आधी मात्रा आखिरी जुलाई के वक्त मिट्टी में मिला दें। 

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साथ ही, शेष आधी नाइट्रोजन की मात्रा को फूल आने के दौरान प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें। क्यारियों में लंबे फल वाली प्रजातियों के लिए 70-75 सेमी और गोल फल वाली प्रजातियों के लिए 90 सेमी के फासले पर पौध रोपण करें। एक हेक्टेयर भूमि में फसल रोपण के लिए 250-300 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

इस तरह करें खरपतवार पर नियंत्रण

आईसीएआर की रिपोर्ट के अनुसार, खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमिथालिन या स्टाम्प नामक खरपतवारनाशी की 3 लीटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से पौध रोपाई से पहले उपयोग करें। 

इस बात का विशेष ख्याल रखें कि छिड़काव से पूर्व भूमि में नमी होनी चाहिए। निराई और गुड़ाई द्वारा भी खेत में खरपतवार की रोकथाम करनी संभव है। फसल की आवश्यकता के अनुरूप ही खेत में सिंचाई का प्रबंध करें।

तनाछेदक कीटों से बचाना जरूरी

तनाछेदक कीट की सूंडी पौधों के प्ररोह को नुकसान करती है और बाद में मुख्य तने में घुस जाती है। छोटे ग्रसित पौधे मुरझाकर सूख जाते हैं। बड़े पौधे मरते नहीं, ये बौने रह जाते हैं और इनमें फल कम लगते हैं।

प्ररोह व फलछेदक कीट से बचाव

प्ररोह व फलछेदक कीट की सूंडी पौधे के प्ररोह व फल को काफी हानि पहुंचाती है। ग्रसित प्ररोह मुरझाकर सूख जाते हैं। फलों में सूंडियां टेढ़ी-मेढ़ी सुरंगे बनाती हैं। 

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फल का ग्रसित हिस्सा काला पड़ जाता है या लगते ही नहीं। तनाछेदक, प्ररोह व फलछेदक के नियंत्रण के लिए रेटून फसल न लें, इसमें फलछेदक का प्रकोप काफी ज्यादा होता है। ग्रसित प्ररोहों व फलों को निकालकर मृदा के अंदर दबा दें।

फलछेदक की निगरानी के लिए 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर लगाएं। नीम बीज अर्क (5 फीसदी) या बी.टी. 1 ग्राम प्रति लीटर या स्पिनोसेड 45 एस.सी 1 मिली प्रति 4 लीटर या कार्बेरिल, 50 डब्ल्यू.पी 2 ग्राम प्रति लीटर या डेल्टमेथ्रिन 1 मिली प्रति लीटर का फूल आने से पहले इस्तेमाल करें।

मई-जून में करें इस बैगन की खेती मिलेगा कम समय में मोटा मुनाफा

मई-जून में करें इस बैगन की खेती मिलेगा कम समय में मोटा मुनाफा

रबी सीजन की गेंहू आदि फसलों की कटाई का समय चल रहा है। किसान अब इसके बाद जायद की विभिन्न प्रकार की फसलों की बुवाई की तैयारी में जुटेंगे। इसलिए आज हम इस सीजन में की जाने वाली बैगन की खेती की जानकारी प्रदान करेंगे। 

भारत में अधिकांश किसान भाई केवल नीले, गुलाबी और हरे रंग के बैगनों को ही जानते हैं । परंतु, क्या आपने कभी दूध की भांति श्वेत यानी सफेद बैगन के विषय में भी सुना है। 

सफेद बैंगन दिखने में पूर्णतय अंडे जैसा नजर आता है। वर्तमान में इस बैगन की बाजार में मांग बढ़ रही है। भारत के अतिरिक्त विदेशों में भी सफेद बैंगन की मांग में काफी उछाल आ रहा है। 

बैंगन की यह एक ऐसी किस्म है, जिसकी खेती करके किसान भाई बंपर कमाई कर सकते हैं। किसान भाई इसका हर मौसम में सालभर उत्पादन कर सकते हैं। 

सफेद बैगन की खेती से कम समय में मोटी आय 

बैंगन की इस किस्म की खेती के लिए सबसे बेहतरीन वक्त फरवरी और मार्च को माना जाता है। किसान फरवरी के समापन से लेकर मार्च की शुरुआत तक इसकी बुवाई कर सकते हैं।

हालांकि, भारत के अंदर बहुत सारे ऐसे इलाके भी हैं, जहां सफेद बैंगन की बुवाई दिसंबर माह में की जाती है। जून-जुलाई के महीनों में सफेद बैंगन पूर्ण रूप से तैयार हो जाते हैं। 

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इनको आसानी से बाजार में बेचकर मुनाफा कमाया जा सकता है। किसानों के लिए कम समय में अधिक आमदनी के लिए सफेद बैंगन की खेती एक शानदार विकल्प है।

किसान भाई इस तरह करें सफेद बैंगन की बुवाई

बैंगन की इस प्रजाति की बुवाई करने से पूर्व आपको क्यारी तैयार कर लेनी चाहिए। आपको तकरीबन डेढ़ मीटर लंबी और 3 मीटर चौड़ी क्यारी को बनाकर तैयार कर लेना चाहिए। 

इसके बाद आपको मिट्टी को भुरभुरा कर लेना है। अब आपको हर एक क्यारी में तकरीबन 200 से 250 ग्राम डीएपी को डाल देना है। क्यारी में डीएपी डालने के पश्चात एक कतार खींचकर इसमें सफेद बैंगन के बीजों की बुवाई करनी है। इसके बाद कुछ ही दिनों में आपको पौधे निकलते हुए नजर आने लगेंगे।

बैगन का सर्वाधिक उत्पादन कहाँ होता है ?

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि भारत में सफेद बैंगन की खेती उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार जैसे बहुत सारे राज्यों में की जाती है। परंतु, इसकी सर्वाधिक खेती जम्मू में देखने को मिलती है। 

भारत के भिन्न-भिन्न राज्यों में सफेद बैंगन की खेती के लिए अधिकाँश किसान जम्मू से ही बीज लाकर इसकी खेती करते हैं। जम्मू के अतिरिक्त देश के बाकी राज्यों में सफेद बैंगन की खेती काफी कम होती है। 

बतादें, कि बैगनी या काले रंग के बैंगने से ज्यादा पौष्टिक तत्व सफेद बैंगन में विघमान होते हैं। बाजारों में इसकी काफी मांग बढ़ने के पीछे लगता है यही कारण है। 

किसान अपनी छत पर इन महंगी सब्जियों को इस माध्यम से उगाऐं

किसान अपनी छत पर इन महंगी सब्जियों को इस माध्यम से उगाऐं

शिमला मिर्च की खेती भी बिल्कुल उसी तरह कर सकते हैं, जैसे बैंगन की करते हैं। हालांकि, इसमें धूप का और पानी का खास ध्यान रखना पड़ता है। प्रयास करें कि शिमला मिर्च के पौधों पर प्रत्यक्ष तौर पर धूप ना पड़े। बाजार में कुछ दिन पूर्व तक टमाटर की कीमत 350 रुपए प्रतिकिलो थी। दरअसल, सरकार के हस्तक्षेप के उपरांत इनके भाव अब 70 से 80 रुपए किलो तक आ गए हैं। परंतु, क्या आपको जानकारी है, कि बाजार के अंदर विभिन्न ऐसी सब्जियां हैं, जो आज भी 150 के पार चल रही हैं। इन सब्जियों में शिमला मिर्च, बैगन और धनिया शम्मिलित हैं। आइए आपको जानकारी दे दें कि कैसे आप इन सब्जियों को अपनी छत पर सहजता से उगा सकते हैं।

गमले के अंदर बैंगन की खेती

बैंगन को छत पर उगाना सबसे सुगम होता है। बाजार में इसके पौधे मिलते हैं, जिन्हें लाकर आप किसी भी गमले में इसको उगा सकते हैं। इसकी संपूर्ण प्रक्रिया के विषय में बात की जाए तो सबसे पहले आपको एक गमला लेना पड़ेगा। जो थोड़ा बड़ा हो उसके बाद उसमें मिट्टी और जैविक खाद मिला लें। जब इस प्रकार से गमला तैयार हो जाए तो नर्सरी से लाए हुए बैंगन के पौधों की इनमें रोपाई करें। एक गमले में आपको एक से ज्यादा पौधा नहीं रोपना चाहिए। ऐसे करके आप छत पर पांच से सात गमलों में बैंगन का उत्पादन कर सकते हैं। ये पौधे दो महीनों के अंतर्गत बैंगन देने लगेंगे। ये भी पढ़े: सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

गमले के अंदर शिमला मिर्च की खेती

शिमला मिर्च की खेती भी बिल्कुल वैसे ही की जा सकती है, जैसे कि बैंगन की करते हैं। हालांकि, इसमें धूप का और पानी का विशेष ख्याल रखना पड़ता है। प्रयास करें कि शिमला मिर्च के पौधों पर प्रत्यक्ष तौर पर धूप ना पड़े। यदि ऐसा हुआ तो पौधा सूख सकता है। इसी प्रकार से आप हरी मिर्च की भी खेती सहजता से कर सकते हैं। यदि आपका छत बड़ा है, तो आप उस पर बहुत सारे गमले रख के एक छोटा सा वेजिटेबल गार्डेन तैयार कर सकते हैं, जिसमें आप प्रतिदिन बगैर रसायन वाली ताजी-ताजी सब्जियां उगा सकते हैं।

गमले के अंदर धनिया की खेती

संभवतः धनिया की खेती सबसे आसान ढ़ंग से की जाती है। हालांकि, इसके लिए आपको गमला नहीं बल्कि कोई चौड़ी वस्तु जैसे कोई बड़ा सा गहरा ट्रे लेना पड़ेगा। इस ट्रे में पहले आप जैविक खाद और मृदा डाल दें, उसके उपरांत इसमें बाजार से लाए धनिया के बीज छींट दें। फिर उसमें पानी का मध्यम छिड़काव कर दें। दस से बीस दिनों के समयांतराल पर धनिया के पौधे तैयार हो जाएंगे, एक महीने के पश्चात आप इनकी पत्तियों का इस्तेमाल कर पाएंगे।
सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

अगर आप सफेद बैंगन की बिजाई करते हैं, तो इसके तुरंत उपरांत फसल में सिंचाई का कार्य कर देना चाहिए। इसकी खेती के लिये अधिक जल की जरुरत नहीं पड़ती। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि प्रत्येक क्षेत्र में लोग लाभ उठाने वाला कार्य कर रहे हैं। 

उसी प्रकार खेती-किसानी के क्षेत्र में भी वर्तमान में किसान ऐसी फसलों का पैदावार कर रहे हैं। जिन फसलों की बाजार में मांग अधिक हो और जो उन्हें उनके खर्चा की तुलना में अच्छा मुनाफा प्रदान कर सकें। 

सफेद बैंगन भी ऐसी ही एक सब्जी है, जिसमें किसानों को मोटा मुनाफा अर्जित हो रहा है। काले बैंगन की तुलनात्मक इस बैंगन की पैदावार भी अधिक होती है। 

साथ ही, बाजार में इसका भाव भी काफी अधिक मिल पाता है। सबसे मुख्य बात यह है, कि बैंगन की यह प्रजाति प्राकृतिक नहीं है। इसे कृषि वैज्ञानिकों ने अनुसंधान के माध्यम से विकसित किया है।

बैंगन की खेती कब और कैसे होती है

सामान्यतः सफेद बैंगन की खेती ठण्ड के दिनों में होती है। परंतु, आजकल इसे टेक्नोलॉजी द्वारा गर्मियों में भी उगाया जाता है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सफेद बैंगन की दो किस्में- पूसा सफेद बैंगन-1 और पूसा हरा बैंगन-1 को विकसित किया है। 

सफेद बैंगन की यह किस्में परंपरागत बैंगन की फसल की तुलना में अतिशीघ्र पककर तैयार हो जाती है। बतादें, कि इसका उत्पादन करने हेतु सबसे पहले इसके बीजों को ग्रीनहाउस में संरक्षित हॉटबेड़ में दबाकर रखा जाता है। 

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साथ ही, इसके उपरांत इसकी बिजाई से पूर्व बीजों का बीजोपचार करना पड़ता है। ऐसा करने से फसल में बीमारियों की आशंका समाप्त हो जाती है। 

बीजों के अंकुरण तक बीजों को जल एवं खाद के माध्यम से पोषण दिया जाता है और पौधा तैयार होने के उपरांत सफेद बैंगन की बिजाई कर दी जाती है। यदि अत्यधिक पैदावार चाहिए तो सफेद बैंगन की बिजाई सदैव पंक्तियों में ही करनी चाहिए।

सफेद बैंगन की खेती बड़ी सहजता से कर सकते हैं

जानकारी के लिए बतादें कि सफेद बैंगन की रोपाई यदि आप करते हैं, तो इसके शीघ्र उपरांत फसल में सिंचाई का कार्य कर देना चाहिए। इसकी खेती के लिये अत्यधिक जल की आवश्यकता नहीं पड़ती है। 

यही कारण है, कि टपक सिंचाई विधि के माध्यम से इसकी खेती के लिए जल की जरूरत बड़े आराम से पूरी हो सकती है। हालांकि, मृदा में नमी को स्थाई रखने के लिये वक्त-वक्त पर आप सिंचाई करते रहें। 

सफेद बैंगन की पैदावार को बढ़ाने के लिए जैविक खाद अथवा जीवामृत का इस्तेमाल करना अच्छा होता है। जानकारी के लिए बतादें, कि इससे बेहतरीन पैदावार मिलने में बेहद सहयोग मिल जाता है। 

इस फसल को कीड़े एवं रोगों से बचाने के लिये नीम से निर्मित जैविक कीटनाशक का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि बैंगन की फसल 70-90 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है।

Brinjal Farming: बैंगन की खेती के बारे में संपूर्ण जानकारी

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कृषक भाई बैंगन का उत्पादन करके काफी शानदार मुनाफा उठा सकते हैं। इसके लिए उनको कुछ विशेष बातों का ख्याल अवश्य रखना पड़ेगा। बैंगन में लौह, कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन ए-बी-सी भी होते हैं। बैंगन की मुख्य तौर पर सब्जी के लिए खेती की जाती है। बतादें कि इन उन्नत वैज्ञानिक क्रियाओं के साथ फसल की जाती है, तो बेहतर उत्पादन मिलता है। किसान इससे काफी अच्छा लाभ कमाते हैं। बैंगन का एक वर्ष में तीन बार सेवन किया जा सकता है। नर्सरी तैयार करने के लिए जून-जुलाई एवं रोपाई के लिए जुलाई-अगस्त बिल्कुल उपयुक्त महीने हैं। बैंगन की फसल को समुचित जल निकासी एवं बलुई दोमट मृदा चाहिए।

बैंगन का खेत तैयार करना

खेत की प्रथम जुताई मृदा पलटने वाले हल से करनी चाहिए। उसके पश्चात 3-4 बार हैरो अथवा देशी हल चलाकर पाटा लगाएं। रोपाई से दस से पंद्रह दिन पूर्व खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद मिश्रित करनी चाहिए। प्रति हेक्टेयर 120 ग्राम नत्रजन, 60 ग्राम फास्फोरस एवं 80 ग्राम पोटाश मिलाकर आखिरी जुताई में आधी नत्रजन, पूरी फास्फोरस एवं पोटाश मिलानी चाहिए।

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बैंगन उत्पादन के लिए नर्सरी बनाना अत्यंत आवश्यक

बतादें, कि एक हेक्टेयर बैंगन की फसल के लिए 400-500 ग्राम बीज और संकर प्रजातियों का 300 ग्राम बीज उपयुक्त माना जाता है। बुवाई से पूर्व बीज का ट्राइकोडरमा से उपचार करें। जहां नर्सरी तैयार है, उस जगह बेहतर ढ़ंग से खुदाई करें। खरपतवारों को निकालकर सड़ी हुई गोबर की खाद को डालनी चाहिए, ताकि जिससे जमीन में जीवांश पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहें। 8 से 10 ग्राम ट्राइकोडमर प्रति वर्ग मीटर में मिलाकर भूमि जनित रोगों को मार डालें। 15 से 20 क्यारियां (एक मीटर चौड़ी और तीन मीटर लंबी) पौध तैयार करने के लिए निर्मित की गईं। बीज को पांच सेमी के फासले पर एक सेमी की गहराई पर पंक्तिबद्ध तरीके से बुवाई करें।

बैंगन की तुड़ाई तथा उत्पत्ति

फल को उस वक्त तोड़ना चाहिए जब वह पूर्ण आकार और रंग प्राप्त कर लें। बैंगन की पैदावार मौसम एवं प्रजाति पर निर्भर करती है। दरअसल, 250-500 कुंतल प्रति हेक्टेयर का औसत उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

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बैंगन का रोपण

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि 12-15 सेमी लंबी चार पत्तियों वाली पौध रोपाई के लिए उपयुक्त मानी जाती है। साथ ही, शाम के समय रोपाई करनी चाहिए। पौधे से 60 गुणा 60 सेमी का फासला रखना चाहिए। रोपाई करने के पश्चात हल्की बारिश करें। फसल की प्रत्येक 12-15 दिन में सिंचाई करते रहनी चाहिए। फसल की समाप्ति से पूर्व निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।
जानें इंफोसिस की नौकरी छोड़ खेती करने वाले किसान के बारे में

जानें इंफोसिस की नौकरी छोड़ खेती करने वाले किसान के बारे में

आज हम आपको इस लेख में बताने जा रहे हैं, कि किसान वेंकटसामी विग्नेश को पूर्व से ही खेती का कोई अनुभव नहीं था। इस वजह से घर वालों ने उनके नौकरी छोड़ने के फैसले का विरोध किया था। प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करने वाले प्रत्येक व्यक्ति की तमन्ना रहती है, कि एक दिन उसको भी नामचीन आईटी कंपनी इंफोसिस में कार्य करने का अवसर मिले। हालाँकि, आज हम आपको ऐसे व्यक्ति से मिलवाने जा रहे हैं, जिसने खेती करने के लिए इंफोसिस की नौकरी को त्याग दिया। दरअसल, उनके इस कदम से नाखुश परिजनों ने उनका खुलकर विरोध किया। इसके बावजूद भी वह अपने निर्णय पर अड़े रहे और जापान पहुँच कर बैगन की खेती चालू कर दी। न्यूज 18 हिन्दी की खबरों के अनुसार, इस व्यक्ति का नाम वेंकटसामी विग्नेश है जो कि तमिलनाडु के थूथुकुडी जनपद स्थित कोविलपट्टी के निवासी हैं। उनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ है, इस वजह से उनका लगाव बचपन से ही खेती के प्रति अधिक रहा था। परंतु, इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूर्ण करने के उपरांत उनकी इंफोसिस जैसी दिग्गज कंपनी में नौकरी लग गई। जहां उनका वेतन भी काफी अच्छा-खासा था। इसके चलते साल 2020 में लॉकडाउन लगने के उपरांत वह घर वापिस आ गए। घर आने के उपरांत उन्होंने इंफोसिस की नौकरी छोड़ दी एवं खेती करने का निर्णय लिया।

कम जमीन से भी ज्यादा पैदावार कैसे मिलती है

मुख्य बात यह है, कि वेंकटसामी विग्नेश को पूर्व से ही खेती का कोई अनुभव नहीं था। इस वजह से घर वालों ने भी नौकरी छोड़ने पर उनका खूब विरोध किया था। हालाँकि, वह किसी की कोई बात नहीं माने और नौकरी त्याग कर खेती करने के लिए जापान चले गए। वह जापान में आधुनिक तकनीक से बैगन की खेती कर रहे हैं। साथ ही, उनको बैगन की खेती से मोटी आमदनी भी हो रही है, इससे उनके परिवार वाले भी अब प्रशन्न हैं। विग्नेश के मुताबिक, जापान में खेती लायक जमीन काफी कम है। इस वजह से यहां पर किसान वैज्ञानिक विधि से खेती किया करते हैं। यही कारण है, जो वहां कम जमीन में भी अत्यधिक उत्पादन प्राप्त होता है।

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जापान में भारत की तुलना में खेती करना बेहद आसान है

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि वेंकटसामी विग्नेश जापान में जिस स्थान पर कृषि कर रहे हैं, वहां उनको निःशुल्क रहने की व्यवस्था मुहैय्या कराई गई है। उन्होंने बताया है, कि जितनी धनराशि वह नौकरी के माध्यम से कमाते थे, फिलहाल उससे दोगुना आमदनी वह करते हैं। बतादें, कि विग्नेश जापान में फसल की देखरेख करने का कार्य करते हैं। साथ ही, फसल कटाई के उपरांत प्रोसेसिंग एवं पैकेजिंग का कार्य भी वे देखते हैं। विग्नेश के बताने के अनुसार, जापान में खेती-किसानी करना भारत की तुलना में काफी ज्यादा आसान होता है। यदि भारत में भी किसान जापान की भांति ही तकनीकी आधारित खेती करते हैं, तो उनकी आमदनी बढ़ जाएगी। इसके लिए सरकार को पहल करने की अत्यंत आवश्यकता है।